हंसी के महा ठहाके - 1 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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हंसी के महा ठहाके - 1

हंसी के महा ठहाके (हास्य - व्यंग्य धारावाहिक) भाग 1

प्रस्तुत हास्य व्यंग्य के धारावाहिक में एक आम नागरिक मामा मौजी राम और उनके शिष्य सवालीराम के किस्से हैं।अपने पास-पड़ोस में बिखरे हास्य के प्रसंगों को एक दीर्घ कथा सूत्र में पिरो कर हंसाने गुदगुदाने वाली रचना के रूप में यहां मातृभारती के आप सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। आज प्रस्तुत है इसका पहला भाग:

भाग 1: क्या-क्या जरूरी है

नए साल 2023 में चीन से आने वाले कोरोना की गंभीर स्थिति की खबरों से मौजी मामा भी बेचैन हो गए हैं।वे बीच-बीच में अपने नगर में भ्रमण पर निकलते हैं।वैसे तो वे कोई सम्राट नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र के इस दौर में स्वयं को किसी सम्राट से कम नहीं समझते हैं।जब में चाहे फूटी कौड़ी न हो लेकिन कुबेर का खजाना साथ होने की खुशफहमी। वैसे यह हो भी क्यों ना? वे देश के एक सामान्य नागरिक हैं। एक साधारण व्यक्ति के हाथ में कितनी ताकत होती है यह सभी को पता है। मौजी रामजी ने कोरोना की तीनों लहरों को नजदीक से देखा है। पहली लहर जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। तब इस बीमारी को लेकर भय और आतंक का ऐसा वातावरण था कि पास पड़ोस में एक भी पॉजिटिव केस मिलने पर कर्फ्यू का सा माहौल बन जाता था और यह इस रोग की रहस्यमय प्रकृति को देखते हुए अस्वाभाविक नहीं था। इस रोग ने जनहानि के साथ-साथ देश की आर्थिक व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया था। देश पहली लहर के बाद टीकाकरण का दौर प्रारंभ कर इस मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ने जा ही रहा था कि दूसरी लहर ने दबे पांव आकर सबसे बड़ा झटका दे दिया। लोगों ने अपनों को खोया। इसने देश को गमों के समंदर दिए और आंसुओं की नदियों सी धार भी बह निकली।इस बार यह रोग कम्युनिटी स्प्रेड की स्थिति में आ गया और लगभग घर-घर में पहुंचने वाली स्थिति बन गई।

तब से मौजी जी भी मास्क, सैनिटाइजर और सुरक्षित दूरी के अभ्यस्त हो गए हैं। जब उन्हें वैक्सीन लगाने का अवसर मिला, वे तत्काल जिला अस्पताल पहुंच गए और पहली डोज ले ली। निर्धारित दिनों के बाद न सिर्फ उन्होंने दूसरी डोज ले ली बल्कि और लोगों को भी वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित किया।

मौजी जी पिछले साल जनवरी की तीसरी लहर से भी अछूते रहे। व्यापक टीकाकरण अभियान के कारण इस बार यह रोग वैसा आतंक नहीं मचा पाया था।मौजी जी अब भी मास्क लगाकर मार्केट जाते हैं। एक दो लोग उन पर हंसने लगे। राह में मिल गए उनके शागिर्द सवालीराम ने प्रश्न की मिसाइल दागी:

"यह क्या मौजी मामा?अब क्या जरूरत है मास्क की?"

मौजी जी ने मानो एयर डिफेंस सिस्टम से उस मिसाइल का सफल बचाव करते हुए कहा:

" तो क्या तब ही मास्क पहनोगे, जब किसी मुसीबत में पड़ जाओगे और मार्केट एरिया में स्वाभाविक रूप से फैलने वाले इस धूलधक्कड़ और प्रदूषण से बचाव के लिए क्या मास्क जरूरी नहीं है?"

सवाली राम के सवाल बंद नहीं हुए:

"अब जो मास्क के पहनने पर असहज लगता है और पसीना भी निकलता है,कभी -कभी सांस फूलने लगती है,वह?"

हंसते हुए मौजी मामा ने कहा:

"जो सांसे अच्छी तरह बची रहेंगी तभी तो असहजता और बचे होने का प्रश्न उठेगा सवाली…"

हंसते हुए सवाली राम ने कहा, "आप ठीक कहते हैं।"

शहर घूमकर घर लौटते समय मौजी मामा सोचते रहे। अब क्या पहनना अनिवार्य रह गया है और क्या नहीं यह तो विचार और विशेषज्ञों की राय का प्रश्न है, लेकिन लोगों को कुछ सामान्य सावधानियां तो जारी रखनी ही चाहिए। विशेषकर तब जब चीन के शहरों से कोरोना संक्रमण की खबरें लगातार मिल रही हैं।

मौजी मामा कवि भी हैं।घर लौटकर उन्होंने एक घनाक्षरी लिखी। लिखना तो चाहते थे हास्य लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए यह हास्य और गंभीरता दोनों की खिचड़ी बन कर रह गई।

घनाक्षरी:-

चले मौजी घूमने को,नगर के डगर में,

देखकर बिंदासों को,हैरत में पड़े हैं।

मास्कमुखी कोई नहीं,सावधानी कहीं नहीं,

सामाजिक दूरी को तो,हर पल तोड़े हैं।

हाहाकार कोरोना से,दिन थे वे संयम के,

सम्हलने का दौर ये,कुतर्क न छोड़े हैं।

सिखा दिया कोरोना ने,वैक्सीन जरूरी है,

मानवता सीख गई,स्वास्थ्य धन जोड़े हैं।

डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय

(कॉपीराइट प्राप्त रचना)